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बुधवार, 10 मई 2017

6:31:00 am

Exclusive : सुनिए निर्भया की कहानी, इलाज करने वाले पहले डॉक्टर की जुबानी...


Exclusive : सुनिए निर्भया की कहानी, इलाज करने वाले पहले डॉक्टर की जुबानी...

Bbethiinkoon
Hindi news

पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले 16 दिसंबर 2012 के निर्भया कांड में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने चारों दरिदों को फांसी की सजा बरकरार रखी। अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि निर्भया के दोषी जीने लायक नहीं हैं। उस काली रात में जब निर्भया को सफदरजंग अस्पताल पहुंचाया गया तो वहां सबसे पहले डॉ. विपुल कंडवाल ने निर्भया का इलाज किया। आइए डॉ. कंडवाल की जुबानी जानते हैं कि आखिर उस रात की कहानी...
समय : रात करीब 01:30 बजे
दिन : 16-17 दिसंबर 2012
स्थान : सफदरजंग अस्पताल, दिल्ली
सायरन बजाती तेज रफ्तार एंबुलेंस अस्पताल की इमरजेंसी के बाहर आकर रुकी। मैं (डॉ. विपुल कंडवाल) उस वक्त इमरजेंसी में नाइट ड्यूटी पर था। तत्काल ही घायल का इमरजेंसी में उपचार शुरू किया गया। हमारे सामने मरीज के रूप में एक 20-21 साल की युवती थी, जो बुरी तरह जख्मी थी। मैं तुरंत इमरजेंसी में मरीज के सामने पहुंचा। उसके शरीर से फटे कपड़े हटाए और जांच की तो दिल दहल गया। मैंने ऐसा केस अपनी जिंदगी में पहले कभी नहीं देखा था। मन में सवाल उठा कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है? मैंने खून रोकने के लिए प्रारंभिक सर्जरी शुरू की। खून नहीं रुक रहा था। क्योंकि रॉड से किए गए जख्म इतने गहरे थे कि उसे बड़ी सर्जरी की जरूरत थी। आंत भी गहरी कटी हुई थी। मुझे नहीं पता था कि ये युवती कौन है। इतने में पुलिस के कई वाहन भी अस्पताल पहुंचने लगे। थोड़ी देर में बड़े अधिकारी भी इमरजेंसी के बाहर पहुंच गए। मीडिया भी आने लगा था। मैने अपने सीनियरों को इसकी सूचना दी।
प्रोफेशन जिंदगी में ऐसा केस कभी नहीं देखा
मैने अपनी प्रोफेशनल लाइफ में कई गैंगरेप के मामले पूर्व में भी देखे हैं, लेकिन ये एक ऐसा मामला था, जिसे देख मैं अंदर तक हिल गया। कई दिन तक मैं गुमसुम रहा। फिर अपने परिवार के बीच में सामान्य हो पाया। बाद में मीडिया और सड़कों पर चले ऐतिहासिक निर्भया आंदोलन ने इस मामले को नई दिशा दी। इधर, पूरी कोशिश के बाद भी निर्भया की हालत नहीं सुधर पा रही थी। इसलिए उपचार के लिए विशेषज्ञ डाक्टरों का एक पैनल बनाया गया। इसमें मैं भी था। बाद में हालत बिगड़ने पर उसे हायर सेंटर रेफर किया गया, जहां से एयर एम्बुलेंस के जरिए सिंगापुर भी भेजा गया। लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद निर्भया को बचाया नहीं जा सका। उसके कुछ समय बाद मैंने सफदरजंग अस्पताल से नौकरी छोड़ दी। आज सुप्रीम कोर्ट से निर्भया के दरिंदों को मौत की सजा मिलने पर मन हल्का हुआ। ऐसा लगा जैसे मन का बोझ उतर गया है।
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