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शनिवार, 17 सितंबर 2016

11:53:00 pm

तो इसलिए हमेशा छोटे बाल रखते हैं सैनिक

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तो इए हमेशा छोटे बाल रखते हैं सैनिक



आप ने अक्‍सर सैनिकों को देखा होगा पर क्‍या आप ने कभी गौर किया है कि हर सैकिन के बाल छोटे क्‍यों होते हैं। सभी सैनिकों की कटिंग एक तरह की ही क्‍यों होती है। शायद आप को ना पता हो पर आज हम आप को बताएंगे कि सैनिकों के बाल छोटे क्‍यों होते हैं।

इसलिए छोटे बाल रखते हैं सैनिक
सैनिकों को अधिक से अधिक समय रणभूमि में ही व्यतीत करना पड़ता है। युद्ध के दौरान उन्हें सिर पर हेलमेट के साथ कई प्रकार के गैजेट्स भी पहनने पड़ते हैं  जिसकी वजह से लंबे बाल तकलीफ का कारण बन सकते है। इसके पीछे एक खास वजह यह भी है कि उन्‍हें गर्मी भी न लगे इसलिए उनके बालों को छोटा रखा जाता है। वैसे सेना के जवानों के पास बाल सवांरने के अलावा भी ढेरों काम होते हैं जिनमे देश की सुरक्षा व्‍यवस्‍था सबसे अहम है। 

इन वजहों से छोटे होते हैं बाल
जब सैनिक बंदूक से निशाना लगाते हैं तो इसके लिए उन्‍हें बहुत धैर्य की जरूरत पड़ती है। निशाना लगाते वक्त बाल एक बाधा बन सकते हैं इसीलिए बालों को छोटा रखा जाता है। बाल अगर बड़े होंगे तो हो सकता है कि निशाना लगाते वक्त बाल आंखों के सामने आ जाएं। बालों के बन्दूक में गिर जाने से बंदूक भी खराब हो सकती है। सैनिकों को कई बार नदी-नाले और बारिशों का सामना करना पड़ता है ऐसे मे बाल अगर छोटे होते है तो बहुत जल्द ही सूख जाते हैं। लंबे बालों की वजह से सैनिक सर्दी जुकाम की चपेट में आ सकते हैं लेकिन छोटे बाल रहने पर वह इन खतरों से बचे रहते हैं।

11:36:00 pm

सोवियत पायलट जो अपने देश का लड़ाकू विमान ही ले uda


सोवियत पायलट जो अपने देश का लड़ाकू विमान ही ले uda

शीत युद्ध के दौरान अमरीका और सोवियत संघ ने एक दूसरे का मुक़ाबला करने के लिए बहुत से नए नए लड़ाकू विमान बनाए थे. सोवियत संघ के एक ऐसे ही लड़ाकू विमान को लेकर अमरीका और दूसरे पश्चिमी देश काफ़ी परेशान रहे थे. उन्हें लग रहा था कि सोवियत संघ ने एक बेहद ताक़तवर और फुर्तीला लड़ाकू विमान बना लिया है, जो उनके हर बॉम्बर और फाइटर प्लेन से बेहतर है.

सत्तर के दशक में सोवियत संघ ने Mig-25 लड़ाकू विमान बनाया था. भारत ने भी इन विमानों को क़रीब 25 साल तक इस्तेमाल किया था. भारत ने मिग-25 विमानों को साल 2006 में रिटायर किया, वो भी कल-पुर्जों की कमी की वजह से.

Image copyrightUS NAVYImage captionमिग 25 का विकसित वर्ज़न मिग 31 था

सोवियत संघ ने Mig-25 विमान सत्तर के दशक में विकसित किया था. 1976 तक अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद अमरीका को इसके बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं हासिल थी. अमरीका के ख़ुफ़िया विमानों ने सोवियत हवाई अड्डों की जो तस्वीरें ली थीं, वहां लंबे डैनों वाले कुछ विमान देखने को मिले थे. इसके बाद इसराइल ने आवाज़ से तीन गुना रफ़्तार से उड़ने वाले कुछ विमान भी देखे थे और उनका पीछा करने की नाकाम कोशिश की थी.

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हालांकि इन कोशिशों के बावजूद अमरीका को Mig-25 के बारे में कुछ ख़ास जानकारी नहीं मिल पा रही थी. इस वजह से वहां के अधिकारी और हुक्मरान परेशान थे कि आख़िर सोवियत संघ के पास ये कौन सा हथियार आ गया है. उन्हें डर लग रहा था कि ये जो ख़ुफ़िया विमान सोवियत सेनाओं के पास है, वो शायद अमरीका के अच्छे से अच्छे लड़ाकू विमानों से बेहतर है, ताक़तवर है और फुर्तीला है.

क़रीब छह साल बाद, अचानक कुछ ऐसा हुआ कि अमरीका की ये मुश्किल हल हो गई.

Image copyrightUS NAVYImage captionअमरीका को लगता था कि उसके सामने एक ऐसा सोवियत विमान है, जो हर चीज़ से तेज़ भाग सकता है.

6 सितंबर 1976 को एक सोवियत लड़ाकू विमान अचानक से जापान के हाकोडाटे शहर के हवाई अड्डे पर नमूदार हुआ. शहर के हवाई अड्डे की छोटी सी पट्टी उस शानदार बड़े डैनों वाले जहाज़ के लिए कम थी. हवाई पट्टी पर उतरने के बाद कुछ सौ मीटर घिसटता हुआ ये विमान आख़िरकार एक खेत में जाकर रुका.

विमान के पायलट ने उतरकर हवा में कुछ गोलियां दागीं. इसके बाद उसने ऐलान किया कि वो सोवियत संघ से भाग आया है और जापान में शरण लेना चाहता है. उस पायलट का नाम था, फ्लाइट लेफ्टिनेंट विक्टर इवानोविच बेलेंको. बेलेंको, सोवियत एयरफ़ोर्स में एक शानदार करियर होने के बावजूद वहां से बेज़ार था और पश्चिमी देशों में जाकर बसना चाह रहा था.

Image copyrightISTOCKImage captionमिग 25 के डर ने एसआर 71 ब्लैकबर्ड को सोवियत संघ के ऊपर से गुज़रने पर रोक दिया था

बेलेंको, आम सोवियत नागरिकों से अलग और बेहतर ज़िंदगी जी रहा था. एयरफोर्स में होने की वजह से उसे काफ़ी सुविधाएं हासिल, थीं जो आम सोवियत नागरिकों को नहीं मिलती थीं. मगर, अमरीका और दूसरे पश्चिमी देशों के बारे में सोवियत संघ के दुष्प्रचार से वो मुतमईन नहीं था. उसे लगता था कि अमरीका को जितना बुरा बताया जाता है वो शायद उतना बुरा नहीं है. निजी ज़िंदगी में भी वो काफ़ी परेशान था. इसीलिए उसने सोवियत संघ से भागने की ठानी.

Image copyrightISTOCKImage captionमिग 25 को देख कर ही अमरीका में एफ़ -15 विमान विकसित हो पाया.

इस काम में मददगार बना वो ख़ुफ़िया लड़ाकू विमान यानी Mig-25 जिसे लेकर अमरीका और उसके साथी देश परेशान थे. काफ़ी दिनों तक तैयारी करने के बाद एक दिन जब बेलेंको Mig-25 लेकर अपने बाक़ी साथियों के साथ रूटीन उड़ान पर निकला तो उनसे अलग होकर जा पहुंचा जापान के हाकोडाटे एयरबेस पर. बेलेंको वही ख़ुफ़िया विमान लेकर सोवियत संघ से उनके पास आया है, जिसे लेकर वो परेशान थे, ये जानकर अमरीका और साथी देश बेहद ख़ुश हुए. अमरीकी ख़ुफिया और रक्षा अधिकारी जापान पहुंचे. उन्होंने बेलेंको के लड़ाकू जहाज़ Mig-25 का पुर्जा पुर्जा खोल डाला.

Image copyrightCIA MUSEUMImage captionफ्लाइट लेफ्टिनेंट विक्टर इवानोविच बेलेंको का आई कार्ड

सोवियत पायलट ने उनके हाथ में मानो सोवियत संघ का ख़ज़ाना सौंप दिया था. मगर, जब जहाज़ की असल ताक़त का अमरीकी अधिकारियों को अंदाज़ा हुआ तो उन्होंने राहत की सांस ली. पहले उन्हें लग रहा था कि सोवियत इंजीनियर्स ने एक ऐसा लड़ाकू जहाज़ बना लिया है जो आवाज़ से तीन गुनी रफ़्तार से उड़ता है. और जो उनके सबसे नए फाइटर SR-71 से भी बेहतर था. मगर जब जापान पहुंचे बेलेंको के Mig-25 फाइटर प्लेन के पुर्जे पुर्जे खोलकर उसकी पड़ताल की गई तो पता चला कि वो तो असल में काग़ज़ का शेर था.

असल में सोवियत एरोनॉटिकल इंजीनियर्स ने जो विमान तैयार किया था वो लंबे डैनों से लैस था, जिससे विमान का वज़न दूर तक बंट जाता था. फिर उसमें बेहद ताक़तवर दो-दो इंजन लगाए गए थे. जिससे वो आवाज़ से तीन गुनी रफ़्तार हासिल कर लेता था. मगर ये विमान बेहद महंगा और भारी था. आसमान की लड़ाई में ये बहुत उपयोगी नहीं था. क्योंकि लंबे डैनों की वजह से इसे उलट-पलटकर करने, दुश्मन को चकमा देने में काफ़ी दिक़्क़त होती थी. और भारी होने की वजह से ये ज़्यादा ईंधन लेकर लंबी दूरी तक उड़ भी नहीं सकता था.

Image copyrightSCIENCE PHOTO LIBRARYImage captionएक्स बी-70 लड़ाकू विमान

हां, Mig-25 की सबसे बड़ी ख़ूबी ये थी कि ये अपनी रफ़्तार की वजह से दुश्मन के रडार को चकमा देने में कामयाब हो जाता था. इसलिए जासूसी के काम में इसका बख़ूबी इस्तेमाल किया जा सकता था. इसराइल के रडार ने जो Mig-25 विमान देखा था, वो असल में ख़ुफ़िया मिशन पर ही था. मगर अपनी तेज़ रफ़्तार की वजह से वो अपने इंजन जला बैठा था और उसका पायलट बमुश्किल अपने एयरबेस तक पहुंच सका था.

Mig-25 विमान को माख 3.2 यानी आवाज़ से तीन गुनी रफ़्तार से उड़ाया जा सकता था. मगर सोवियत पायलटों को कहा गया था कि वो माख 2.8 की रफ़्तार से आगे न जाएं, वरना उनके इंजन गर्मी से जल जाएंगे.

अच्छी बात ये रही कि अमरीका, क़रीब छह सालों तक इन विमानों को लेकर परेशान रहा. फिर इस ख़ुफिया सोवियत लड़ाकू विमान से निपटने के लिए अमरीका ने F-15 नाम का फुर्तीला और ताक़तवर लड़ाकू विमान विकसित किया. ये आज भी अमरीका की वायुसेना इस्तेमाल करती है.

वहीं जिस सोवियत विमान यानी Mig-25 को बरसों तक पश्चिमी देश बहुत शानदार विमान समझते रहे, वो काग़ज़ का शेर साबित हुआ. इसका रडार सिस्टम भी उस वक़्त के अमरीकी विमानों से कमतर ही था.

इसकी कमियों से निपटने के लिए बाद में सोवियत वैज्ञानिकों ने सुखोई-27 और मिग-31 जैसे विमान तैयार किए.

Image copyrightUS AIR FORCEImage captionजिस सोवियत विमान को बरसों तक पश्चिमी देश बहुत शानदार समझते रहे, वो काग़ज़ का शेर साबित हुआ

इनमें से कई आज भी रूस की वायुसेना में इस्तेमाल किए जा रहे हैं. भारत ने भी क़रीब 25 सालों तक मिग-25 विमानों का इस्तेमाल किया.

वहीं जिस सोवियत Mig-25 विमान को लेकर बेलेंको जापान भाग आया था उसे फिर से तैयार करके जापान ने सोवियत संघ को वापस कर दिया था. इसके ख़र्च के तौर पर जापान ने सोवियत संघ से 40 हज़ार डॉलर भी वसूले थे.

सोवियत संघ के सबसे बड़े हवाई राज़ का पर्दाफ़ाश करने वाले विक्टर इवानोविच बेलेंको को अमरीका ने अपनी नागरिकता से नवाज़ा था. उस वक़्त के अमरीकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर ने ख़ुद उसे नागरिकता देने वाली फ़ाइल पर दस्तख़त किए थे.

अमरीका पहुंचकर बेलेंको, वहां की एयरफ़ोर्स के साथ एक सलाहकार के तौर पर जुड़ गया था

11:32:00 pm

यहां पत्नी के लिए ग्राहक ढूंढ कर लाते हैं पति

यहां पत्नी के लिए ग्राहक ढूंढ कर लाते हैं पति

नई दिल्‍ली: आप शायद इस खबर का शीर्ष पढ़ने के बाद यह सोच रहे होंगे कि यह खबर भारत के किसी पिछड़े इलाके या दुगर्म जगह के बारे में होगी, लेकिन आपको जानकार आश्‍चर्य होगा कि एनसीआर के नजफगढ़, प्रेमनगर और धर्मशाला में रहने वाला पेरना समुदाय में देह व्यापार पीढ़ियों से चला आ रहा है।

इतना ही नहीं उन्हें शादी के बाद ससुरालवालों के लिए पैसा कमाने का जरिया बनाकर प्रोस्टिट्यूशन में धकेल दिया जाता है। 'पेरना समुदाय' साल 1964 में राजस्थान से दिल्ली आया था। शुरुआत में भीख मांगकर गुजारा चलाया। हालांकि बाद में देह व्यापार करना शुरू कर दिया। समुदाय की लड़कियां चौथी या पांचवी तक पढ़ती हैं। जब तक वे कुछ समझने लायक होती हैं, तब तक शादी के नाम पर उनका सौदा कर दिया जाता है।

लड़कियों को शादी के नाम पर बेचने से पहले समुदाय पंचायत में पेश किया जाता है, जहां लड़कियों की सुंदरता के हिसाब से रेट तय होते हैं। शादी के बाद ससुराल वाले पहला बच्चा होने के साथ ही लड़कियों से देह व्यापार कराना शुरू कर देते हैं। उनके लिए ग्राहक तलाशने का काम कोई और नहीं बल्कि उनके पति ही करते हैं। वैसे कुछ एनजीओ इन लड़कियों को इस गंदगी से निकालने के लिए काम कर रहे हैं।

11:05:00 pm

Without female born a beby : तो अब दो मर्द मिलकर पैदा कर सकेंगे बच्चा!

तो अब दो मर्द मिलकर पैदा कर सकेंगे बच्चा!



वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक रिसर्च में सफलता पायी है। उनका कहना है कि अब दो पुरुष मिलकर बच्चा पैदा कर सकते हैं। अब बच्चा पैदा करने के लिए महिलाओं की जरूरत नहीं होगी।

वैज्ञानिकों का कहना है कि शुरुआती प्रयोगों से ऐसा लगता है कि एक दिन अंडाणुओं की मदद के बिना भी बच्चे पैदा किए जा सकेंगे। वैज्ञानिकों ने इस दिशा में चूहे के स्वस्थ बच्चे को पैदा करने में कामयाबी हासिल की है। इसके लिए उन्होंने सिर्फ शुक्राणुओं की मदद ली


नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में छपे इस शोध के निष्कर्षों से यह पता चला है कि भविष्य में बच्चे पैदा करने की प्रक्रिया से औरतों को दूर रखा जा सकता है। बाथ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अनिषेचित अंडे से इस प्रयोग की शुरुआत की थी। उन्होंने रसायनों का इस्तेमाल कर एक नकली भ्रूण बनाया। इस 'नकली भ्रूण' के कई गुण दूसरी आम कोशिकाओं की तरह थे जैसे कि ये त्वचा की कोशिकाओं की तरह विभाजित होते थे और अपने डीएनए को नियंत्रित करते थे।


शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर चूहे के नकली भ्रूण में शुक्राणु को डालकर चूहे के स्वस्थ बच्चे पैदा किए जा सकते हैं तो बहुत संभव है कि एक दिन इंसानों को भी अंडों के अलावा दूसरी कोशिकाओं से पैदा किया जा सके। शोधकर्ता दल के एक डॉक्टर टोनी पेरी ने बीबीसी न्यूज़ से कहा, "यह पहली बार है जब अंडे के अलावा किसी चीज़ से शुक्राणु को मिलाकर बच्चे पैदा किए गए हैं। इसने दो सौ सालों की सोच को पलट कर रख दिया है।"
10:54:00 pm

Sex doll:ऐसे तैयार की जाती हैं 'उस काम' आने वाली डॉल, देखें वीडियो

ऐसे तैयार की जाती हैं 'उस काम' आने वाली डॉल, देखें वीडियो

इस दुनिया में कोई काम नामुमकिन तो नहीं है। इंसान की जैसी-जैसी जरूरत वैसी-वैसी सुविधाएं। अब सेक्स डॉल को ही ले लीजिए, आज इंसान अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए इन डॉल्स का इस्तेमाल करता है और सबसे ज्यादा इसका इस्तेमाल ब्रिटेन में किया जाता है हालांकि अमेरिका भी ब्रिटेन से कम नहीं है वहां भी लोग इन डॉल्स का जमकर इस्तेमाल करते हैं।

अब बात आती है कि ये डॉल्स बनाई कैसे जाती हैं और इंसानों तक कैसे पहुंचती हैं? तो यहां हम आपको बता दें कि इन डॉल्स को बनाने का काम अमेरिका की एक फैक्ट्री में होता है। यहां हजारों डॉल्स तैयार की जाती हैं। ये लोगों की हमसफर नहीं, बल्कि लोगों के बिस्तर तक का सफर करती हैं।
सांचे में ढालकर तैयार की जाने वाली इन डमी का अंत एक खूबसूरत डॉल के रूप में होता है। खैर, ऐसा नहीं है कि सिर्फ पुरुषों के लिए इस प्रकार की डॉल्स आती हैं, महिलाएं भी ऐसी डॉल्स का प्रयोग करती हैं। पर वो डॉल एक पुरुष की होती है। भारत में इस तरह की सेक्स डॉल्स और टॉयस की पता नहीं कितनी मांग है, पर विदेशों में इनकी मांग काफी ज्यादा है। इन डॉल्स की कीमत इतनी ज्यादा होती है कि हर कोई इन्हें नहीं खरीद सकता।

10:38:00 pm

पीने वालों की हो गई मौज, क्‍योंकि इस शहर में बिछ गई है बियर की पाइप लाइन!

पीने वालों की हो गई मौज, क्‍योंकि इस शहर में बिछ गई है बियर की पाइप लाइन!

वर्ल्‍ड हेरिटेज साइट ब्रूजेस में टैंकर में नहीं अब पाइपलाइन में दौड़ेगी बियर
बियर के शौकीन लोगों को सच में क्‍या चाहिए, बियर का एक मग और पाइप लाइन से जुड़ी टोंटी से निकलती अंतहीन बियर। जी हां बियर के शौकीन लोगों के लिए यह एक सपने जैसा ही है, जो अब सच हो चुका है। बेल्‍जियम के ऐतिहासिक शहर ब्रूजेस में बियर की सप्‍लाई के लिए अब टैंकरों की आवाजाही बंद हो गई है। कारण कि यहां चालू हो गई है दुनिया की पहली बियर पाइपलाइन। यूनेस्‍को की वर्ल्‍ड हेरिटेज साइट ब्रूजेस वेनिस जैसी खूबसूरत नहरों, इमारतों के अलावा बियर टूरिज्‍म के लिए भी दुनिया भर में मशहूर है। यहां बनती है वर्ल्‍ड की सबसे बेहतरीन बियर। बियर की ब्रूजेस और ब्रूजेस के बाहर सप्‍लाई के लिए शहर में दिन भर बियर के टैंकर दौड़ते रहते थे। ये भारी भरकम टैंकर इस मध्‍ययुगीन शहर की ऐतिहासिक इमारतों और गलियों को नुकसान पहुंचा रहे थे। इन सदियों पुरानी इमारतों और गलियों को सुरक्षित रखने के लिए शहर के मेयर रीनट लैंडयुट चाहते थे कि इस शहर में ट्रकों की आवाजाही कम से कम हो जाए।

पाइपलाइन में प्रति घंटा बहेगी 4 हजार लीटर बियर
ब्रूजेस की फेमस De Halve Maan brewery के चीफ जेवियर वेंस्‍टे ने शहर के मेयर के साथ मिलकर इस समस्‍या का हल निकाला। शहर में बनने वाली बियर को 3 किलोमीटर दूर हब स्‍टेशन और बॉटलिंग प्‍लांट तक पहुंचाने के लिए टैंकर की बजाय बियर की कॉमन पाइपलाइन बिछाने का फैसला लिया गया। क्राउड फंडिंग की मदद से इस पाइप लाइन प्रोजेक्‍ट के लिए 40 लाख यूरो जुटाए गए और फिर पाइपलाइन काम शुरू हुआ। फाइनली कल यानि शुकवार से 3 किलोमीटर लंबी इस पाइपलाइन में बियर की नदी बहनी शुरू हो गई है। अब ब्रूजेस में बनने वाली सारी बियर इसी पाइप लाइन से होकर गुजरेगी। यानि कि इस पाइपलाइन में प्रति घंटा 4 हजार लीटर बियर बहेगी।

10:32:00 pm

स्कूल में लड़कियां ले रही थी सेल्फी, तस्वीर में नजर आया कुछ डरावना

स्कूल में लड़कियां ले रही थी सेल्फी, तस्वीर में नजर आया कुछ डरावना


स्कूल में अक्सर खींची गई तस्वीरें आपको अपने सुनहरे दिनों की याद दिला देती हैं। लेकिन कुछ लोगों के लिए कुछ तस्वीरें जिंदगीभर के लिए खौफ पैदा कर देती हैं। ऐसा ही एक वाकया स्कूल की दो लड़कियों के साथ हुआ, जब उनकी तस्वीर में एक आत्मा भी शामिल 

फिलीपीन्स के रिजल हाई स्कूल के वाशरूम में दो लड़कियां मौज मस्ती कर रही थी। इसी दौरान उन दोनों ने इस लम्हें को अपने कैमरे से कैद कर लिया।

जैसे ही दोनों ने अपनी सेल्फी को देखा तो उनके होश उड़ गए।  दरअसल सामान्य सी दिखने वाली इस तस्वीर में उनके साथ कोई और भी मौजूद था।


10:08:00 pm

20 की उम्र में 2 साल की दिखती है ये लड़की! (Pics)

20 की उम्र में 2 साल की दिखती है ये लड़की! (Pics)

आजकल की लड़कियां कॉलेज जाती हैं और पार्टी करती हैं। इस तरह अपनी लाइफ को खूब एन्जॉय करती हैं लेकिन एक एेसी लड़की है गिरिजा जो 20 साल की उम्र में 2 साल की बच्ची की तरह लगती है। यह लड़की बच्ची की तरह अपने परिवार की गोद में लेटी रहती है। हैरानी वाली बात तो यह है कि गिरिजा अपनी कला की वजह से दुनिया भर में मशहूर है। 

यह लड़की का जन्म बंगलूरू में हुआ है। कंजेनिटल अगेनेसिस नामक बीमारी की शिकार है यह लड़की। इस बीमारी के चलते इसके शरीर के अंग बढ़ नहीं पाते। इसी वजह के कारण वह ढाई इंच तक ही बढ़ पाई है। यह न तो बैठ सकती है और न ही चल सकती है। गिरिजा के माता-पिता उसको इस हालात में देखकर पूरी तरह से टूट जाते हैं। वो चाहते हैं कि उनकी बेटी दूसरे बच्चों की तरह जिंदगी जिए। इस हालात में होते हुए भी गिरिजा लेटे-लेटे ही खूबसूरत पेंटिग्स करती है। अपनी पेंटिग्स से गिरिजा हर महीने 10 हजार कमा लेती है।

8:20:00 pm

GOLDEN TOILET:सोने से बना है यह टॉयलेट, आप भी कर सकते हैं इस्तेमाल...!

सोने से बना है यह टॉयलेट, आप भी कर सकते हैं इस्तेमाल...!


नई दिल्ली (17 सितंबर):आपने सोने के सिंहासन के बारे में तो खूब सुना होगा, लेकिन क्या आपने कभी सोने के टॉयलेट के बारे में सुना हैं ? जी हाँ, इन दिनों एक होटल में लोगों को सोने के टॉयलेट में बैठने का मौका मिल रहा है। न्यूयॉर्क के सिटी म्युजियम में इन दिनों लोग सोने के टॉयलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं।

अमेरिका के 'सोलोमोन आर म्यूजियम' में प्रदर्शनी के रूप में सोने के टॉयलेट को रखा गया है। म्युजियम के चौथे तल्ले के रेस्टरूम में सोने के कमोड सीट को लगाया गया है। 18 कैरेट सोने के टॉयलेट का इस्तेमाल म्युजियम में आने वाला कोई भी आदमी कर सकता है।


8:00:00 pm

BOTH SEX NEW BORN BABY:जन्मा विचित्र बच्चा: शरीर में स्त्री और पुरुष दोनों के अंग

जन्मा विचित्र बच्चा: शरीर में स्त्री और पुरुष दोनों के अंग

'THIINKOON' WHATS A LEVEL OF GOD SCIENCE

पटना। ऊपरवाले की माया भी बड़ी निराली है। इसके आगे मेेडिकल साइंस भी कई बार असहाय नजर आती है। ऐसा ही एक मामला बिहार के नवादा जिले में सामने आया है। यहां एक महिला के एक विचित्र बच्चे को जन्म दिया है। इस बच्चे के शरीर में स्त्री और पुरुष दोनों के अंग हैं। इस बच्चे को देखकर चिकित्सक भी हैरान है।

नवादा के पकरीबरावां थाना क्षेत्र के छतरवार गांव निवासी राजकुमार पासवान की पत्नी जानी देवी ने बच्चे को जन्म दिया। इस बच्चे के शरीर में स्त्री और पुरुष दोनों के अंग को देखर लोग हैरान रह गए।

इस बच्चे के परिजन उसे पकरीबरावां पीएचसी ले गए, जहां से चिकित्सकों ने उसे सदर अस्पताल रैफर कर दिया। नवादा सदर अस्पताल के डॉक्टरों ने भी इस अजीबोगरीब बच्चे को देखकर पीएमसीएच भेज दिया।

परिजनों का कहना है कि बच्चे के अंग को देखर आम आदमी से लेकर डॉक्टर तक हैरान हैं। बच्चे के जन्म के बाद से ही अस्पताल परिसर में उसे देखने वालों की भीड़ जमा हो गई। डॉक्टरों का कहना है कि कई बार देखा गया है कि कुदरत की गलती की वजह से ऐसे बच्चे जन्म लेते हैं, जिन्हें मेडिकल की भाषा में ग्लूड बेबी कहा जाता है।

7:52:00 pm

WORLD SMALLEST GIRL 227 GM: दुनिया की सबसे छोटी बच्ची इसका वज़न हैं कुल 227 ग्राम


दुनिया की सबसे छोटी बच्ची इसका वज़न हैं कुल 227 ग्राम

जर्मनी की एमीलिया दुनिया की सबसे छोटी और कम वजन की बच्ची मानी जा रही है। जन्म के समय इस बच्ची का वजन एक शिमला मिर्च जितना था. उसके पैर अंगूठे के बराबर थे और कुल लंबाई 22 सेंटीमीटर थी। डॉक्टर्स और परिवार ने उसकी देखरेख की, जिसके नौ माह बाद उसका वजन एक नवजात शिशु के बराबर का हुआ।

आज नौ माह की ये नन्हीं फाइटर गर्ल स्वस्थ है और अपने परिवार के साथ खुश भी है। लोकल रिपोर्ट्स के अनुसार एमीलिया जीवित रहने वाली विश्व की सबसे कम वजनी प्रीमेच्यॉर बेबी है। इससे पहले यह रिकॉर्ड रुमाइसा रहमान के नाम था। जन्म के वक्त उसका वजन 8.6 आउंस था, जबकि एमीलिया का वजन 8 आउंस था, यानी कि लगभग 227 ग्राम।


जर्मनी के सेंट मैरी हॉस्पिटल के गायनेकोलॉजिस्ट बहमन घारवी ने बताया कि, 14 आउंस का बच्चा भी बहुत मुश्किल से ही जीवित रह पाता है। हमें एमीलिया को भी धन्यवाद करना चाहिए, आखिर यह उसकी जीने की चाह ही तो है, जो वह आज जीवित है। अभी तक एमीलिया में डिसएबिलिटी के कोई साइन नजर नहीं आए हैं

7:48:00 pm

MALE MOTHER :आदमी ने बच्चें को दिया जन्म पिला रहा है अपना दूध

आदमी ने बच्चें को दिया जन्म पिला रहा है अपना दूध


क्या आपने कभी सोचा है की एक मर्द भी बच्चे को जन्म दे सकता है. लेकिन हम आपको एक ऐसा ही मामला बताने जा रहे है. यह मामला अमेरिका में सामने आया है. जहाँ एवं नाम के एक शख्स ने एक बच्चे को जन्म दिया है.

उनकी बहन जेस्सी हेम्पेल ने ट्विटर और टाइम की वेबसाइट पर आर्टिकल लिखकर बताया कि उनके भाई ने बच्चे को जन्म दिया और अब वह उसको अपना दूध पिलाकर पाल रहे हैं। जेस्सी ने इसकी एक तस्वीर भी ट्विटर पर पोस्ट की। वहीँ उनकी बहन जेस्सी हेम्पेल ने ट्विटर पर भाई की फोटो पोस्ट करते हुए लिखा, ‘इवान की प्रेगनेंसी इस बात का सबूत है कि हम एक अद्भुत युग में जी रहे हैं।

19 साल की उम्र में उन्होंने हार्मोन ट्रीटमेंट करवाया जिसके बाद वह मर्द बन गए। लेकिन उन्होंने अपने महिला जननांग और ब्रेस्ट को रहने दिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह अपना बच्चा चाहते थे और उसे दूध पिलाने की जरुरत पड़ सकती थी। वहीँ इवान ने कहा कि मां बनने का उनका अनुभव काफी पॉजिटीव रहा। वह कहते हैं, ‘यह एक तरह से जुआ था। मैं नहीं जानता था कि मैं कैसा फील करूंगा। लेकिन जब यह सबकुछ हुआ तो मुझे लगा कि हां, मेरा शरीर यह सब कर सकता है।’


7:40:00 pm

इस राजा की हैं 60 बीवियां, खाना म्यांमार में खाता है, सोने के लिए रोज आता है भारत

इस राजा की हैं 60 बीवियां, खाना म्यांमार में खाता है, सोने के लिए रोज आता है भारत

नई दिल्ली। आज के समय में भी एक राज की 60 बीवियां है। हैरान करने वाली बात तो यह है कि यह राजा रोज खाना तो म्यांमार में खाता है, लेकिन सोने के लिए भारत आता है, वह भी बिना कोई फ्लाइट पकड़े। दरअसल यह कहानी नागालैंड के लोंगवा गांव की है। यहां कोन्याक जनजाति के लोग रहते हैं और इस गांव का आधा हिस्सा भारत में है, जबकि आधा म्यांमार में है। यहां के लोग बिना वीजा-पासपोर्ट के भारत और म्यांमार में आते जाते हैं।

बता दें कि इस ट्राइब के राजा का नाम अंग नगोवांग है। इस राजा के अधीन लोंगवा समेत कुल 75 गांव आते हैं। वहीं इनके घर के बीच से होकर म्यांमार और भारत का बॉर्डर गुजरता है। ऐसे में इनका परिवार खाता तो म्यांमार के हिस्से में खाता है और सोने के लिए भारतीय सीमा का उपयोग करता है। बता दें कि लोंगवा गांव के राजा का परिवार काफी बड़ा है। इसमें उनकी 60 बीवियां शामिल हैं और राजा का बेटा म्यांमार आर्मी में है।

भारत-म्यांमार सीमा पर होने के कारण यहां के लोगों को तकनीकी तौर पर दोनों ही देशों की नागरिकता मिली हुई है। ऐसे में इन्हें म्यांमार जाने के लिए न तो वीजा की जरूरत होती है और न ही भारतीय पासपोर्ट की। यहां के लोग दोनों ही देशों में स्वतंत्र रूप से घूम सकते हैं।

इस ट्राइब के लोगों को हेड हंटर्स के नाम से भी जाना जाता है। पहले ये लोग इंसानों को मारकर उसके सिर को साथ ले जाते थे। हालांकि 1960 के दशक बाद यहां हेड हंटिंग नहीं होती है, लेकिन लोगों के घरों में सजाई गई खोपडिय़ों को देखा जा सकता है।

11:11:00 am

हैरान परेशानः एक ही पेड़ पर लगते हैं 40 तरह के फल

हैरान परेशानः एक ही पेड़ पर लगते हैं 40 तरह के फल

फलों को सेहतमंद रखने का नुस्खा माना जाता है। लेकिन क्या कभी आपने ऐसे पेड़ के बारे में सुना है, जिसमें 40 तरह के अलग-अलग फल लगते हों। यकीन मानिए ये कोई मजाक नहीं है। जानिए कहां है ये पेड़ जिससे आप 40 तरह के फल खा सकते हैं।

अमेरिका में एक विजुअल आर्टस के प्रोफेसर ने अद्भुत पौधा तैयार किया है। 40 प्रकार के फल देने वाला यह पौधा 'ट्री ऑफ 40' नाम से मशहूर है। इसमें बेर, सतालू, खुबानी, चेरी और नेक्टराइन जैसे कई फल लगते हैं।

इस पेड़ की कीमत आपके होश उड़ाने के लिए काफी है

अमेरिका की सेराक्यूज यूनिवर्सिटी में विजुअल आर्ट्स के प्रफेसर वॉन ऐकेन ने इस पेड़ को तैयार किया है जिसकी करीब 19 लाख रुपए है। इसका काम 2008 में उस समय शुरू हुआ जब वॉन ऐकेन ने न्यू यॉर्क स्टेट ऐग्रिकल्चरल एक्सपेरिमेंट में एक बगीचे को देखा जिसमें 200 तरह के बेर और खुबानी के पौधे थे। ये बगीचा फंड की कमी से बंद होने वाला था।

इस बगीचे में कई प्राचीन और दुर्गम पौधों की प्रजातियां भी थी। वॉन का जन्म खेती से संबंधित परिवार में होने के कारण खेती-बाड़ी में उनको हमेशा दिलचस्पी रही। उन्होंने इस बागीचे को लीज पर ले लिया और ग्राफ्टिंग तकनीक की मदद से उन्होंने ट्री ऑफ 40 जैसे अद्भुत कारनामे को अंजाम दिया।

ग्राफ्टिंग तकनीक के तहत पौधा तैयार करने के लिए सर्दियों में पेड़ की एक टहनी कली समेत काटकर अलग कर ली जाती है। इसके बाद इस टहनी को मुख्य पेड़ में छेद करके लगा दिया जाता है। जुड़े हुए स्थान पर पोषक तत्वों का लेप लगाकर सर्दी भर के लिए पट्टी बांध दी जाती है। इसके बाद टहनी धीरे–धीरे मुख्य पेड़ से जुड़ जाती है और उसमें फल–फूल आने लगते हैं।

11:08:00 am

इस ज्यूस से सिर्फ 42 दिनों में ख़त्म होगा कैंसर, अब तक 45000 लोग हो चुके है पूरी तरह ठीक। शेयर जरूर करे

इस ज्यूस से सिर्फ 42 दिनों में ख़त्म होगा कैंसर, अब तक 45000 लोग हो चुके है पूरी तरह ठीक। शेयर जरूर करे

इस प्रसिद्ध ऑस्ट्रियाई रस ने कैंसर और अन्य असाध्य रोगों से 45,000 से अधिक लोगों को ठीक किया है :एक विशेष भोजन की मौजूदा जो 42 दिनों के लिए रहता है का आविष्कार किया। रुडोल्फ सिफारिश की है कि सभी लोगों को सिर्फ चाय और इस सब्जी का रस पीना चाहिए।इस अद्भुत घर का बना रस में मुख्य घटक चुकंदर है । उनका दावा है कि इस चक्र के दौरान , कैंसर की कोशिका मर जाते हैं।नोट : सुनिश्चित करें कि आप जैविक या स्थानीय उगाई सब्जियों का उपयोग करते हैं।
आप निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी :चुकंदर (55 %),गाजर (20 %),अजवाइन रूट (20 %),आलू (3%),मूली (2 %) [इनका जूस बनाएं, अपने ड्रिंक का आनंद लें।]
नोट : इस जुस को जादा मात्रा में न पिये, अपने शारीरिक आवश्यकता के अनुसार ही पिये।ऑस्ट्रिया के रुडोल्फ Breuss ने कैंसर के लिए सबसे अच्छा प्राकृतिक इलाज खोजने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। Rudolf Breuss ने बताया के कैंसर ठोस भोजन पर ही जिंदा रहता है , कैंसर को बढ़ने से रोका जा सकता है अगर कैंसर का मरीज़ 42 दिन तक सिर्फ सब्जिओं का रस और चाय ही ले |Rudolf Breuss ने एक ख़ास जूस तयार किया जिसके बहुत ही शानदार नतीजे देखने को मिले , उन्होंने इस तरीके से 45,000 से भी ज़यादा लोग जिन्हें कैंसर या कई इसी लाइलाज बीमारियाँ थी को ठीक किया | ब्रोज्स का कहना था के कैंसर सिर्फ प्रोटीन पर ही जिंदा रहता है
breuss का कैंसर को ठीक करने का ये तरीका 42 दिन तक चलता है , कियोंके कैंसर के सेल्स का मेटाबोलिज्म हमारे शारीर में मोजूद बाकी सेल्स से अलग होता है , breuss का ये ख़ास किसम का रस इस तरीके से तयार किया गया है जिस से कैंसर के सेल्स तक कोई ठोस प्रोटीन युक्त भोजन ना पहुच सके और कोई खुराक न मिलने के कारण उसके सेल्स अपने आप ख़त्म हो जाएँ परन्तु ये रस शारीर के बाकि सेल्स को कोई नुकसान नही पहुचाता |

इन 42 दिनों के दौरान सभी कच्चे फल और सब्जियां तरल रूप में दिए जाते हैं | breuss ने इस बात पर ख़ास जोर दिया है के कैंसर के मरीज़ को 42 दिनों के लिए सिर्फ रस और चाय हे दी जाये इसके इलावा कोई भी ठोस चीज़ खाने के लिए नही दी जाये | इस दौरान इस्तेमाल की जाने वाली सब्जियां कुदरती (organic ) तरीके से उगाइ गई हों और अच्छे से साफ की गई हों |कियोंकि कैंसर के सेल ठोस खाने में पाए जाने वाले प्रोटीन पर ही जिंदा रहते हैं तो अगर आप 42 दिनों के लिए कुछ भी ठोस नही खायेंगे और सिर्फ जूस और चाय ही लेंगे तो कैंसर के cell अपने आप ख़तम हो जायेंगे और शारीर के normal cell उसी तरह रहेंगे |कच्चे फल और सब्जिओं का रस हमेशा से बहुत सारी बिमारिओं के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है | विज्ञानं ने भी ये साबित किया है के कच्चे फल और सब्जिओं में anti oxidatns और कई ऐसे तत्व पाए जाते है जिनका हमारे भोजन में शामिल होना बहुत ज़रूरी है ता के हम आज कल के वातावरण में खुद को खतरनाक बिमारिओं से बचा सकें

इस ख़ास जूस में इस्तेमाल होने वाले फल और सब्जियां :

1 चुकंदर (beet root)1 गाजर (carrot)1/2 आलू (potato)1 मूली (radish)1 अजवायन के पोदे की डंडी (celery stick)ध्यान दे : सभी चीजें organic होनी चाहेये |सभी चीज़ों को जूसर में डाल कर अच्छे से रस निकाल लें और इसे छान लें ता के कोई भी ठोस चीज़ उस में न जाएँ | गिलास में डाल कर इसे ताज़ा पीयें |

 

 

 

11:00:00 am

जब ऐसा महसूस हो तो समझना आसपास है कोई आत्मा

जब ऐसा महसूस हो तो समझना आसपास है कोई आत्मा

भूत-प्रेतों की कहानियों से अक्सर कई लोग खौफ खा जाते हैं तो कई लोग इसे अफवाह बताकर खारिज कर देते हैं। हालांकि कुछ लोगों का तर्क रहता है कि जैसे दिन है तो रात भी है।
काला है तो सफेद भी है, उसी प्रकार यदि दुनिया में ईश्वर है तो भूत प्रेत भी अवश्य होंगे। लेकिन अक्सर ये भी सवाल उठते हैं कि आखिर भूत-प्रेत या आत्माएं हैं तो फिर दिखाई क्यों नहीं देती है।
दरअसल जिस प्रकार हम ईश्वर को प्रत्यक्ष रूप से नहीं देख पाते हैं, उसी प्रकार भूत-प्रेत या आत्मा को भी नहीं देख पाते हैं। इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। आईये जानते हैं, कुछ ऐसे सिग्नल के बारे में, जो ये दर्शाते हैं कि आसपास ही कोई आत्मा है।
- आध्यात्मिक गुरुओं और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि आत्माओं का इलेक्ट्रिसिटी पर नियंत्रण होता है। जब कभी ऐसा लगे कि आपका नया बल्ब अजीबोगरीब तरीके से जलने व बुझने लगता है, तो यह किसी आत्मा की मौजूदगी का प्रमाण हो सकता हैl
- जब कोई घड़ी निश्चित समय पर ही बार-बार रूकने लग जाए तो इसका ये मतलब हो सकता है कि इन्सान की आत्मा उस समय पर कुछ कहना चाहती है।
- अगर आपके कमरे में अचानक बेवजह ठंड बढ़ जाए और आपके शरीर का तापमान गिरने लगे तो समझ जाए कि आपके अलावा वहां और भी कोई है।
- अगर आपको कहीं घूमते हुए सुनसान जगह पर अचानक सेंट की खुशबू आने लगे, तो यह आत्माओं की मौजूदगी का संकेत है।

- कुछ लोगों को उनके मरे हुए रिश्तेदार या नज़दीकी दोस्तों के चेहरे दिखाई देते रहते हैं। इसका मतलब है कि वो संपर्क स्थापित करना चाहते हैं।
- कई बार हमें ऐसा अहसास होता है कि कोई छू रहा है, दरअसल ये किसी करीबी के पास होने का अहसास होता है, जो अब दुनिया में नहीं है
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7:43:00 am

Cancer tablet :कैंसर के मरीजों के लिए वरदान है ये फल, कीमोथेरेपी से है 10 हज़ार गुना अधिक प्रभावशाली

कैंसर के मरीजों के लिए वरदान है ये फल, कीमोथेरेपी से है 10 हज़ार गुना अधिक प्रभावशाली

    

ग्रेविओला जिसे हिंदी में रामफल कहते है, ज्यादातर अफ्रीका , दक्षिण अमेरिका और दक्षिणपूर्व एशिया के बरसाती जंगलों में पाया जाता है. कुछ साल पहले जब इसके बारे में नए रिसर्च किये गए तो पता चला की इसके रस में कई ऐसे तत्व होते है जो कैंसर का इलाज करने में काम आ सकता है. यह तत्व यकृत और स्तन कैंसर के कीटाणुओं को मारने की क्षमता रखतें है.यह शरीफे की तरह दिखने वाला फल भारत के कई इलाकों में भी मिलता है जैसे हैदराबाद जो तेलंगाना की राजधानी है. यहाँ की भाषा “तेलुगु” में भी इसे रामफल ही कहतें हैं. क्या रामफल सचमुच कैंसर को मारने की क्षमता रखता है. चलिये देखते है की इस खट्टे फल की क्या क्या खास बातें है और ये कैसे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है.


ग्रेविओला या रामफल मिलता कहाँ है ?

रामफल का पेड़ एक सदाबहार पेड़ है जो क्यूबा, मध्य अमेरिका, मैक्सिको, कोलंबिया, ब्राजील, पेरू, वेनेजुएला और अन्य अमेज़न के वर्षावन क्षेत्रों में पाया जाता है. यह फल लाखों कैंसर के रोगियों के लोगों के साथ-साथ उनके डॉक्टरों के लिए आशा की एक किरण के रूप में आता है। इसका वैज्ञानिक नाम एनोना मुरिकाता है, और इस फल को कैंसर के प्राकृतिक इलाज के रूप में पूरे समुदाय के लिए एक भगवान का उपहार माना जा सकता है। वैसे कई परिक्षण किए गए हैं लेकिन इसे कैंसर के लिए एक सिद्ध उपचार के रूप में घोषित करने से पहले बहुत और परिक्षण करने की जरूरत है. अभी तक के रिसर्च से ये माना जा रहा है के ये फल कैंसर के इलाज़ में काफी कारगर हो सकता है। ग्रेविओला , पत्ते, पाउडर, कैप्सूल के रूप में और यहां तक कि तरल रूपों में विभिन्न रूपों में उपलब्ध है

ग्रेविओला- एक फल अलग-अलग नाम-ग्रेविओला के समानार्थी शब्द

स्पेनिश लोग इसे “गुआनबाणा ” फल कहते हैं। पुर्तगाली “ग्रेविओला ” कहते हैं। ब्राजीलियाई ऐसे गंदा, गुयाबानो, करोसोलिएर , गुआनावाना , टोगे बांरेिसि , डूरियन बंगला , नंगका ब्लॉन्डा , सिर्सक , और नंगका लोंडा के रूप में अलग-अलग नामों से बुलाते हैं । दक्षिण भारतीय राज्य केरल में, यह बस कांटों के साथ शरीफा,या “मुल्लथा ” के रूप में जाना जाता है। अन्य भारतीय क्षेत्रों में, यह शूल -राम-फल और हनुमान फल के रूप में जाना जाता है।यह बड़े फल आकार का एक खट्टा फल है । यह कच्चा खाया जाता है और इसके गूदे या रस का शर्बत तैयार करने में भी उपयोग हो सकता है. इस फल केकैंसर रोधक गुण उल्लेखनीय हैं। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, यह एक नियमितकीमोथेरेपी से दस हजार गुना अधिक प्रभावी हो सकता है।

ग्रेविओला के स्वास्थ्य लाभ और कुछ सामान्य गुण

इससे भी बड़ी बात ये है कि यह एक प्राकृतिक फलों का रस है, इसलिए किसी भी तरह का साइड इफ़ेक्ट नहीं होता ।वैसे ग्रेविओला कई तरह के इलाज में उपयोग किया जाता है, यह मुखयतः अपने कैंसर विरोधी प्रभाव के लिए बहुत लोकप्रिय हो गया हैपेट के कीड़े और परजीवी इस फल से स्वाभाविक रूप से मारे जाते हैइसमें कोई शक नहीं कि ग्रेविओला कैंसर की रोकथाम का काम करता हैग्रेविओला उच्च रक्तचाप के प्रबंधन और उपचार में भी प्रयोग किया जाता हैअपने एंटीबायोटिक या माइक्रोबियल विरोधी गुणों के कारण ग्रेविओला फंगल संक्रमण से लड़ने में अद्भुत काम करता हैतनाव, अवसाद और तंत्रिका संबंधी विकार से पीड़ित लोगों को इस फल लेने के बाद सकारात्मक परिणाम दिखाई दिए हैग्रेविओला पेड़ कहीं भी आसानी से उगाया जा सकता है जैसे हैदराबाद और कई दूसरे जगहों पर


ग्रेविओला के औषधीय गुण

इसकी पत्तियां कैंसर कोशिकाओं को मारने में समान रूप से प्रभावी हैं ।यह कैंसर की कोशिकाओं को मारता है और एक प्राकृतिक चिकित्साके रूप में प्रभावी है ।जो इस फल का उपयोग करता है, उसका समग्र दृष्टिकोण में सुधार आता हैं ।यह पेड़ और इसके हिस्से कई घातक संक्रमण के खिलाफ काम करतें है ।केमो चिकित्सा के विपरीत इससे वजन घटना, बालों का झरना और मतली जैसे में कोई साइड इफेक्ट नहीं है ।चाहे उपचार कितने दिन भी चले , आप हमेशा मजबूत और स्वस्थमहसूस करते हैं ।ग्रेविओला का रस एक प्रतिरक्षा प्रणाली बूस्टर और रक्षक का काम करता है ।

ग्रेविओला पेड़ के रस का लाभ

इसका रस पेट के कैंसर, स्तन कैंसर, प्रोस्ट्रेट कैंसर, अग्नाशय के कैंसर और फेफड़ों के कैंसर कोशिकाओं को मारता है कैंसर कोशिकाओं को मारने के क्रम में यह स्वस्थ कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं करता है

ग्रेविओला के अन्य औषधीय उपयोग

ग्रेविओला पेड़ की छाल, जड़ और यहां तक कि फल के बीज विभिन्न स्वास्थ्य के मुद्दों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया गया है, जैसे :

खराब लिवरदमादिल के रोगगठिया और जोड़ों से संबंधित बीमारियों

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