सोवियत पायलट जो अपने देश का लड़ाकू विमान ही ले uda
सोवियत पायलट जो अपने देश का लड़ाकू विमान ही ले uda
शीत युद्ध के दौरान अमरीका और सोवियत संघ ने एक दूसरे का मुक़ाबला करने के लिए बहुत से नए नए लड़ाकू विमान बनाए थे. सोवियत संघ के एक ऐसे ही लड़ाकू विमान को लेकर अमरीका और दूसरे पश्चिमी देश काफ़ी परेशान रहे थे. उन्हें लग रहा था कि सोवियत संघ ने एक बेहद ताक़तवर और फुर्तीला लड़ाकू विमान बना लिया है, जो उनके हर बॉम्बर और फाइटर प्लेन से बेहतर है.
सत्तर के दशक में सोवियत संघ ने Mig-25 लड़ाकू विमान बनाया था. भारत ने भी इन विमानों को क़रीब 25 साल तक इस्तेमाल किया था. भारत ने मिग-25 विमानों को साल 2006 में रिटायर किया, वो भी कल-पुर्जों की कमी की वजह से.
Image copyrightUS NAVYImage captionमिग 25 का विकसित वर्ज़न मिग 31 था
सोवियत संघ ने Mig-25 विमान सत्तर के दशक में विकसित किया था. 1976 तक अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद अमरीका को इसके बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं हासिल थी. अमरीका के ख़ुफ़िया विमानों ने सोवियत हवाई अड्डों की जो तस्वीरें ली थीं, वहां लंबे डैनों वाले कुछ विमान देखने को मिले थे. इसके बाद इसराइल ने आवाज़ से तीन गुना रफ़्तार से उड़ने वाले कुछ विमान भी देखे थे और उनका पीछा करने की नाकाम कोशिश की थी.
हालांकि इन कोशिशों के बावजूद अमरीका को Mig-25 के बारे में कुछ ख़ास जानकारी नहीं मिल पा रही थी. इस वजह से वहां के अधिकारी और हुक्मरान परेशान थे कि आख़िर सोवियत संघ के पास ये कौन सा हथियार आ गया है. उन्हें डर लग रहा था कि ये जो ख़ुफ़िया विमान सोवियत सेनाओं के पास है, वो शायद अमरीका के अच्छे से अच्छे लड़ाकू विमानों से बेहतर है, ताक़तवर है और फुर्तीला है.
क़रीब छह साल बाद, अचानक कुछ ऐसा हुआ कि अमरीका की ये मुश्किल हल हो गई.
Image copyrightUS NAVYImage captionअमरीका को लगता था कि उसके सामने एक ऐसा सोवियत विमान है, जो हर चीज़ से तेज़ भाग सकता है.
6 सितंबर 1976 को एक सोवियत लड़ाकू विमान अचानक से जापान के हाकोडाटे शहर के हवाई अड्डे पर नमूदार हुआ. शहर के हवाई अड्डे की छोटी सी पट्टी उस शानदार बड़े डैनों वाले जहाज़ के लिए कम थी. हवाई पट्टी पर उतरने के बाद कुछ सौ मीटर घिसटता हुआ ये विमान आख़िरकार एक खेत में जाकर रुका.
विमान के पायलट ने उतरकर हवा में कुछ गोलियां दागीं. इसके बाद उसने ऐलान किया कि वो सोवियत संघ से भाग आया है और जापान में शरण लेना चाहता है. उस पायलट का नाम था, फ्लाइट लेफ्टिनेंट विक्टर इवानोविच बेलेंको. बेलेंको, सोवियत एयरफ़ोर्स में एक शानदार करियर होने के बावजूद वहां से बेज़ार था और पश्चिमी देशों में जाकर बसना चाह रहा था.
Image copyrightISTOCKImage captionमिग 25 के डर ने एसआर 71 ब्लैकबर्ड को सोवियत संघ के ऊपर से गुज़रने पर रोक दिया था
बेलेंको, आम सोवियत नागरिकों से अलग और बेहतर ज़िंदगी जी रहा था. एयरफोर्स में होने की वजह से उसे काफ़ी सुविधाएं हासिल, थीं जो आम सोवियत नागरिकों को नहीं मिलती थीं. मगर, अमरीका और दूसरे पश्चिमी देशों के बारे में सोवियत संघ के दुष्प्रचार से वो मुतमईन नहीं था. उसे लगता था कि अमरीका को जितना बुरा बताया जाता है वो शायद उतना बुरा नहीं है. निजी ज़िंदगी में भी वो काफ़ी परेशान था. इसीलिए उसने सोवियत संघ से भागने की ठानी.
Image copyrightISTOCKImage captionमिग 25 को देख कर ही अमरीका में एफ़ -15 विमान विकसित हो पाया.
इस काम में मददगार बना वो ख़ुफ़िया लड़ाकू विमान यानी Mig-25 जिसे लेकर अमरीका और उसके साथी देश परेशान थे. काफ़ी दिनों तक तैयारी करने के बाद एक दिन जब बेलेंको Mig-25 लेकर अपने बाक़ी साथियों के साथ रूटीन उड़ान पर निकला तो उनसे अलग होकर जा पहुंचा जापान के हाकोडाटे एयरबेस पर. बेलेंको वही ख़ुफ़िया विमान लेकर सोवियत संघ से उनके पास आया है, जिसे लेकर वो परेशान थे, ये जानकर अमरीका और साथी देश बेहद ख़ुश हुए. अमरीकी ख़ुफिया और रक्षा अधिकारी जापान पहुंचे. उन्होंने बेलेंको के लड़ाकू जहाज़ Mig-25 का पुर्जा पुर्जा खोल डाला.
Image copyrightCIA MUSEUMImage captionफ्लाइट लेफ्टिनेंट विक्टर इवानोविच बेलेंको का आई कार्ड
सोवियत पायलट ने उनके हाथ में मानो सोवियत संघ का ख़ज़ाना सौंप दिया था. मगर, जब जहाज़ की असल ताक़त का अमरीकी अधिकारियों को अंदाज़ा हुआ तो उन्होंने राहत की सांस ली. पहले उन्हें लग रहा था कि सोवियत इंजीनियर्स ने एक ऐसा लड़ाकू जहाज़ बना लिया है जो आवाज़ से तीन गुनी रफ़्तार से उड़ता है. और जो उनके सबसे नए फाइटर SR-71 से भी बेहतर था. मगर जब जापान पहुंचे बेलेंको के Mig-25 फाइटर प्लेन के पुर्जे पुर्जे खोलकर उसकी पड़ताल की गई तो पता चला कि वो तो असल में काग़ज़ का शेर था.
असल में सोवियत एरोनॉटिकल इंजीनियर्स ने जो विमान तैयार किया था वो लंबे डैनों से लैस था, जिससे विमान का वज़न दूर तक बंट जाता था. फिर उसमें बेहद ताक़तवर दो-दो इंजन लगाए गए थे. जिससे वो आवाज़ से तीन गुनी रफ़्तार हासिल कर लेता था. मगर ये विमान बेहद महंगा और भारी था. आसमान की लड़ाई में ये बहुत उपयोगी नहीं था. क्योंकि लंबे डैनों की वजह से इसे उलट-पलटकर करने, दुश्मन को चकमा देने में काफ़ी दिक़्क़त होती थी. और भारी होने की वजह से ये ज़्यादा ईंधन लेकर लंबी दूरी तक उड़ भी नहीं सकता था.
Image copyrightSCIENCE PHOTO LIBRARYImage captionएक्स बी-70 लड़ाकू विमान
हां, Mig-25 की सबसे बड़ी ख़ूबी ये थी कि ये अपनी रफ़्तार की वजह से दुश्मन के रडार को चकमा देने में कामयाब हो जाता था. इसलिए जासूसी के काम में इसका बख़ूबी इस्तेमाल किया जा सकता था. इसराइल के रडार ने जो Mig-25 विमान देखा था, वो असल में ख़ुफ़िया मिशन पर ही था. मगर अपनी तेज़ रफ़्तार की वजह से वो अपने इंजन जला बैठा था और उसका पायलट बमुश्किल अपने एयरबेस तक पहुंच सका था.
Mig-25 विमान को माख 3.2 यानी आवाज़ से तीन गुनी रफ़्तार से उड़ाया जा सकता था. मगर सोवियत पायलटों को कहा गया था कि वो माख 2.8 की रफ़्तार से आगे न जाएं, वरना उनके इंजन गर्मी से जल जाएंगे.
अच्छी बात ये रही कि अमरीका, क़रीब छह सालों तक इन विमानों को लेकर परेशान रहा. फिर इस ख़ुफिया सोवियत लड़ाकू विमान से निपटने के लिए अमरीका ने F-15 नाम का फुर्तीला और ताक़तवर लड़ाकू विमान विकसित किया. ये आज भी अमरीका की वायुसेना इस्तेमाल करती है.
वहीं जिस सोवियत विमान यानी Mig-25 को बरसों तक पश्चिमी देश बहुत शानदार विमान समझते रहे, वो काग़ज़ का शेर साबित हुआ. इसका रडार सिस्टम भी उस वक़्त के अमरीकी विमानों से कमतर ही था.
इसकी कमियों से निपटने के लिए बाद में सोवियत वैज्ञानिकों ने सुखोई-27 और मिग-31 जैसे विमान तैयार किए.
Image copyrightUS AIR FORCEImage captionजिस सोवियत विमान को बरसों तक पश्चिमी देश बहुत शानदार समझते रहे, वो काग़ज़ का शेर साबित हुआ
इनमें से कई आज भी रूस की वायुसेना में इस्तेमाल किए जा रहे हैं. भारत ने भी क़रीब 25 सालों तक मिग-25 विमानों का इस्तेमाल किया.
वहीं जिस सोवियत Mig-25 विमान को लेकर बेलेंको जापान भाग आया था उसे फिर से तैयार करके जापान ने सोवियत संघ को वापस कर दिया था. इसके ख़र्च के तौर पर जापान ने सोवियत संघ से 40 हज़ार डॉलर भी वसूले थे.
सोवियत संघ के सबसे बड़े हवाई राज़ का पर्दाफ़ाश करने वाले विक्टर इवानोविच बेलेंको को अमरीका ने अपनी नागरिकता से नवाज़ा था. उस वक़्त के अमरीकी राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर ने ख़ुद उसे नागरिकता देने वाली फ़ाइल पर दस्तख़त किए थे.
अमरीका पहुंचकर बेलेंको, वहां की एयरफ़ोर्स के साथ एक सलाहकार के तौर पर जुड़ गया था
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