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गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

बृहस्पति देव की पूजा अर्थ और लाभ

देवगुरु बृहस्पति की आराधना से मनोवांछित वरदान मिलता है इसलिए ऐसे जातक जिनकी शादी नहीं हो रही हो, उन्हें अथवा जिनका अपने जीवन साथी से सामंजस्य नहीं बनता हो, उन्हें भी गुरु को प्रसन्न रखने की हिदायत दी जाती है। इसी क्रम में आज हम देवगुरु बृहस्पति से संबंधित मंत्र, पूजा पद्धति और उन्हें प्रसन्न करने के अन्य उपायों को जानेंगे। शास्त्रों में बृहस्पति को देवगुरु माना गया है।
बृहस्पति यानि गुरु बुद्धि, ज्ञान और विद्या के देवता। ------- ज्योतिष विज्ञान के अनुसार बृहस्पति यानि गुरु बुद्धि, ज्ञान और विद्या के देवता हैं। यह गुण ही किसी व्यक्ति के चरित्र, व्यक्तित्व और भाग्य को नियत करते हैं। ------- किसी व्यक्ति का सुंदर, सात्विक, धार्मिक और आध्यात्मिक होना गुरु के शुभ होने के कारण ही होता है। दाम्पत्य सुख भी गुरु की अच्छे या बुरे योग पर निर्भर रहते हैं।
यहीं नहीं जब व्यक्ति पूरे प्रयास और समय देकर भी अगर कामयाबी से दूर रहता हो, तब ऐसे वक्त नसीब का निर्णायक भी गुरु ही होता है। इस तरह गुरु बृहस्पति की पूजा से विद्या, ज्ञान प्राप्ति के साथ भाग्य बाधा खत्म हो जाती है। ------ जब किसी व्यक्ति को हर मनचाहा सुख मिलता है, तब वह स्वयं को खुशकिस्मत मानता है। किंतु थोड़ा ही कष्ट मिलने पर वह स्वयं की किस्मत को कोसने लगता है। तब वह उनसे छुटकारे के लिए तरह-तरह से धार्मिक उपायों को अपनाता है। किंतु कोई भी व्यक्ति दैनिक देव उपासना से ऐसी बदकिस्मती और परेशानियों से दूर रह सकता है।

गुरुवार का दिन बृहस्पति आराधना के लिए नियत है। --------इस दिन सुबह नित्यकर्मों से निवृत होकर सर्वप्रथम स्नान करें। पीले वस्त्र पहनें। ------------- पीला वस्त्र पर गुरु बृहस्पति की प्रतिमा को रखकर देवगुरु चार भुजाधारी मूर्ति का पंचामृत स्नान यानि दही, दूध, शहद, घी, शक्कर कराएं। स्नान के बाद गंध, अक्षत, पीले फूल, चमेली के फूलों से पूजा करें l

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