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गुरुवार, 22 सितंबर 2016

यहां होता है मौत पर जश्‍न, कब्र से लाश निकालकर करते हैं डांस


यहां होता है मौत पर जश्‍न, कब्र से लाश निकालकर करते हैं डांस

मेडागास्‍कर। घर में अगर किसी की मौत हो जाती है तो मातम छा जाता है। अपने करीबी के दुनिया से चले जाने का इतना दुख होता है कि कुछ समय तक आप उसे बाहर नहीं निकल पाते हैं। लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि अफ्रीका के पूर्वी तट पर स्थित एक द्वीपीय देश मेडागास्‍कर में एक अलग ही रिवाज है। मेडागास्‍कर में आदमी के मरने के बार त्‍योहार जैसा माहौल होता है। यहां के परिवार एक अजीब रस्‍म फामाडिहाना (टर्निग ऑफ द बोन्स) मनाते हैं। इस रस्‍म में लोग कब्र से लाश को फिर से निकाल उनकी शव यात्रा निकालते हैं।

इस दौरान नए कपड़े पहने जाते हैं। शव को भी एक नए साफ कपड़े में लपेटते हैं और फिर उसके साथ ही नाचते-गाते हैं। नाच-गाने के लिए तेज संगीत भी बजाया जाता है। जानवरों की बलि दी जाती है और मेहमानों व परिवारजनों के बीच मांसाहारी भोजन बांटा जाता है।
यह एक ऐसा रिवाज है जो मेडागास्कर क्षेत्र में हर सात सालों में मनाया जाता है। यहां के लोगों का मानना है कि मृत शरीर जितनी जल्दी कंकाल बनेगा वो उतनी ही जल्दी मुक्त हो सकेगा और तभी नए जीवन में प्रवेश कर सकेगा। उनके मुताबिक, जब तक शरीर पर मांस है तब तक आत्मा दूसरा शरीर धारण नहीं कर सकती। इसलिए यहां के लोग अपने प्रियजनों के शरीर को कब्र से निकालकर उसके साथ नाचते हैं। नाच-गाने के बाद ये लोग उस लाश को दोबारा से दफना देते हैं।

मालागासी मान्‍यता के अनुसार लोग पूर्वजों के शरीर से बने हैं। इसलिए वे अपने पूर्वजों का बहुत आदर करते हैं। रोचक बात यह है कि यह त्‍योहार मेडागास्‍कर की प्राचीन प्रथा नहीं है। इसका मूल सत्रहवीं शताब्‍दी के परे नहीं मिलता है।

हालांकि इन दिनों फामाडिहाना का आयोजन बहुत महंगा पड़ता है क्‍योंकि इसमें मेहमानों के लिए भव्‍य भोजन की तैयारी से सभी के लिए नए कपड़ों का इंतजाम भी करना पड़ता है। परंपरागत रूप से अगर कोई परिवार फामाडिहाना का आयोजन नहीं करता है तो इसे गंभीर उल्‍लंघन माना जाता है। हालांकि कई मालागासी इस मुद्दे पर अगल राय रखते हैं। कुछ मानते हैं कि इतना खर्चा पूरी तरह से व्‍यर्थ है और अन्‍य का मानना है कि मृत के साथ बात करना असंभव है। इवेंजलिकल प्रोटेस्‍टेंट इस कस्‍टम को पूरी तरह से हतोत्‍साहित करते हैं। हालांकि कैथोलिक चर्च फामाडिहाना को एक सांस्‍कृतिक आयोजन मानते हैं ना कि धार्मिक।

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