पांचों पांडव द्रौपदी के साथ काम्य वन में अपना आश्रम बनाकर रह रहे थे तभी...
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अर्जुन के इंद्रप्रस्थ से दिव्यास्त्र की शिक्षा पाकर लौटने के बाद पांचों पांडव द्रौपदी के साथ काम्य वन में अपना आश्रम बनाकर रह रहे थे। एक बार पांचों पांडव किसी कार्यवश बाहर गए। आश्रम में केवल द्रौपदी, उनकी एक दासी और पुरोहित धौम्य ही थे। एक दिन दुर्योधन की बहन का पति जयद्रथ विवाह की इच्छा से शाल्व देश जा रहा था। अचानक आश्रम के द्वार पर खड़ी द्रौपदी पर उसकी दृष्टि पड़ी और वह उस पर मुग्ध हो उठा।
उसने अपनी सेना को वहीं रोक कर अपने मित्र कोटिकास्य से उस स्त्री के बारे में पता करने को कहा। जब उसे यह पता चला कि वह पांचों पांडवों की पत्नी द्रौपदी है, तो उसने स्वयं जाकर द्रौपदी से कहा कि वन में मारे-मारे फिरने वाले पांडवों का त्याग कर उसकी पत्नी बन जाए। जयद्रथ के वचनों को सुनकर द्रौपदी ने उसे बहुत धिक्कारा, लेकिन दुराचारी जयद्रथ पर उनकी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और उसने द्रौपदी को शक्तिपूर्वक खींचकर अपने रथ में बैठा लिया। गुरु धौम्य द्रौपदी की रक्षा के लिए आए, तो उन्हें जयद्रथ ने भूमि पर पटक दिया और अपना रथ वहां से भगाने लगा। थोड़ी देर में पांडव आश्रम लौटे। द्रौपदी के अपहरण का समाचार पाते ही भीम गदा लेकर जयद्रथ के पीछे भागे। युधिष्ठिर ने भीम को बताया कि वह बहन दु:शला का पति है, अत: उसे जान से मत मारना।
उसी समय अर्जुन भी उसके पीछे भागे। जयद्रथ द्रौपदी को छोड़कर भाग गया। भीम ने जयद्रथ का पीछा किया तथा उसे पकड़कर द्रौपदी के सामने ले आए और उसे अपने मनोनुकूल सजा देने को कहा। द्रौपदी ने सजा देने की बजाय उसे क्षमा कर दिया और उसके हाथों में पड़े बंधन को खोल दिया।
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