अगर इन गद्दारों ने अंग्रेजों का साथ न दिया होता, तो देश 1857 में ही आज़ाद हो गया होता
अगर इन गद्दारों ने अंग्रेजों का साथ न दिया होता, तो देश 1857 में ही आज़ाद हो गया होता

आज हम अधिकारों की बात करते हैं, जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करते हैं, नेताओं को काला झंडा दिखाते हैं, पर क्या ये सब तब भी मुमकिन था, जब देश गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ होता? शायद ये तब इतना आसान नहीं होता. इतिहास की कई किताबें अंग्रेजों के जुल्मों-सितम से भरी हुई हैं, पर इसके लिए जितना अंग्रेज़ जिम्मेदार हैं, उतने ही वो हिंदुस्तानी भी जिम्मेदार हैं, जिन्होंने अपने फायदे के लिए अंग्रेजों का साथ दिया. आज हम आपको कुछ ऐसे ही लोगों के बारे में बता रहे हैं, जो पैदा तो हिंदुस्तान की मिट्टी में हुए पर अपने निजी फायदे के लिए मिट्टी से ही गद्दारी कर बैठे.
मीर जफ़र
गद्दारों की लिस्ट में मीर जफ़र सबसे पहला नाम है. बंगाल के नबाब सिराज-उद-दौला ने जब बंगाल की गद्दी संभाली थी, वो अंग्रेजों के इरादे भांप गए थे. अंग्रेजों की शक्ति पर लगाम लगाने के लिए उन्होंने कई सख्त कदम उठाये, जिससे ईस्ट इंडिया कंपनी में हड़कंप मच गया. अपनी खोई हुई ताकत को दोबारा हासिल करने के लिए उन्होंने सिराज-उद-दौला को युद्ध के लिए ललकारा, जिसके तहत प्लासी का युद्ध हुआ. इस युद्ध में नबाब के सेनापति मीर जफ़र ने गद्दारी करते हुए अंग्रेजों का साथ दिया. इसके पीछे मीर की महत्वाकांक्षा बंगाल का नबाब बनने के थी. इस युद्ध का अंत सिराज की हार के साथ हुआ और सत्ता मीर के हाथों में आ गई.
ज़मींदार
1857 की क्रांति के समय कई ज़मीदारों ने अंग्रेजों का साथ दिया और उन्हें सैन्य शक्ति के साथ-साथ ज़मीन और पैसा भी मुहैया करवाया. इसके पीछे ज़मीदारों को डर था कि अगर कहीं हिंदुस्तान आज़ाद हो गया तो उनकी ज़मीन और उनका शासन, दोनों हाथ से जा सकता है.
जयचन्द
राजपूतों की गौरव गाथा तो आपने कई बार सुनी होगी पर क्या आप जानते हैं, राजपूतों में एक ऐसा भी गद्दार रहा है, जिसने भारत का काला इतिहास लिखा.
एक मशहूर कहावत है कि 'जयचंद तूने देश को बर्बाद कर दिया. गैरों को ला कर हिंद में आबाद कर दिया'.
ये कहावत कन्नौज के राजा जयचंद के लिए लिखी गई है. इतिहास की पुस्तकों के मुताबिक, पृथ्वीराज चौहान जयचन्द की बेटी संयोगिता से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. अपनी मोहब्बत को पाने के लिए पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द से लोहा लिया और संयोगिता से शादी की. जयचन्द अपनी इस हार से बौखला गया और पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के मौके तलाशता रहा. उसे यह मौका मोहम्मद गोरी के रूप में मिला और उसने अफगानिस्तान के शासक मोहम्मद गोरी को भारत पर आक्रमण के लिए न्यौता भेजा, जिसकी वजह से तराइन के युद्ध हुआ और इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हुई.
जयाजीराव सिंधिया
ग्वालियर राजघराने के जयाजीराव सिंधिया का नाम बेशक बड़ी तहज़ीब और सम्मान के साथ लिया जाता है. पर ये वही जयाजीराव सिंधिया है, जिन्होंने 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों का साथ दिया था और अपनी सेना को लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे के खिलाफ इस्तेमाल किया था. अंग्रेजों के प्रति उनकी वफादारी का ही फल था कि उन्हें बाद में 'Knights Grand Commander' के ख़िताब से नवाज़ा गया था.
महाराजा नरेंद्र सिंह (पटियाला)
1857 संग्राम के दौरान पंजाब में सिखों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया. इस विद्रोह को कुचलने के लिए पटियाला के महाराज नरेंद्र सिंह, जींद के राजा सरूप सिंह, कपूरथला से राजा रणधीर सिंह ने अंग्रेज़ो का साथ दिया. इन लोगों ने सिख विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों को हथियार और सेना उपलब्ध कराई.
राय बहादुर जीवन लाल (नारनौल)
राय बहादुर जीवन लाल के पिता राजा रघुनाथ बहादुर, औरंगज़ेब के मुख्यमंत्री थे. इन्होंने अंग्रेजों से हाथ मिला कर मुग़ल शासन के खात्मे की कहानी लिखी. बाद में राय बहादुर भी अंग्रेजों के साथ मिल गए और भरतपुर रियासत के दरवाज़े अंग्रेजों के लिए खोल दिए.
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