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रविवार, 18 सितंबर 2016

कामयाबी हनुमान मंत्र से: BELIEVE


कामयाबी हनुमान मंत्र से

संबंधित लेख  गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीहनुमान की ताकत को उजागर करते हुए श्रीहनुमान चालीसा में लिखा है कि – 


दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।

 दुनिया के सारे मुश्किल काम सिर्फ श्री हनुमान की कृपा व स्मरण से ही आसान हो जाते हैं। मंगलवार का दिन ऐसे  श्री हनुमान के ध्यान से जीवन मंगलमय बनाने के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है।
इस दिन श्रीहनुमान का ध्यान ग्रह, मन, कर्म व विचारों के दोषों को दूर कर सुख-सफलता देने वाला माना गया है। इसके लिए हनुमान के विशेष मंत्र के ध्यान का महत्व हैं। 

मंत्रों की शक्ति तथा इनका महत्व ज्योतिष 

मंत्रों का जाप नियमित रूप से तथा अनुशासनपूर्वक करना चाहिए।

मंत्रों के माध्यम से ऐसे बहुत से दोष बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं जो रत्नों तथा अन्य उपायों के द्वारा ठीक नहीं किए जा सकते। ज्योतिष में रत्नों का प्रयोग किसी कुंडली में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है तथा अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित माना जाता है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की ताकत बढ़ती है, उसका स्वभाव नहीं बदलता। इसलिए जहां एक ओर अच्छे असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बुरा असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनके द्वारा की जाने वाली हानि की मात्रा भी बढ़ जाती है। इसलिए किसी  बुरा असर देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।

वहीं दूसरी ओर किसी ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ उसका किसी कुंडली में बुरा स्वभाव बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है। इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी कुंडली में अच्छा तथा बुरा असर देने वाले दोनो ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है। साधारण हालात में नवग्रहों के मूल मंत्र तथा विशेष हालात में एवम विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए नवग्रहों के बीज मंत्रों तथा वेद मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।                                                           

 नवग्रहों के वेद मंत्र 

सूर्य :     ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मतर्य च 
            हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन॥ 
           इदं सूर्याय न मम॥
चन्द्र :    ॐ इमं देवाSसपत् न ग्वं सुवध्वम् महते क्षत्राय महते ज्येष्ठयाय 
            महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय इमममुष्य पुत्रमुष्यै पुत्रमस्यै विश एष     
            वोSमी राजा सोमोSस्माकं ब्राह्मणानां ग्वं राजा॥ इदं चन्द्रमसे न मम॥
गुरू :     ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
            यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम॥
            इदं बृहस्पतये, इदं न मम॥
शुक्र :     ॐ अन्नात् परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय:।
             सोमं प्रजापति: ॠतेन सत्यमिन्द्रियं पिवानं ग्वं 
            शुक्रमन्धसSइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोSमृतं मधु॥ इदं शुक्राय, न मम।
मंगल :   ॐ अग्निमूर्द्धा दिव: ककुपति: पृथिव्या अयम्।
            अपा ग्वं रेता ग्वं सि जिन्वति। इदं भौमाय, इदं न मम॥
बुध :     ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहित्वमिष्टापूर्ते स ग्वं सृजेथामयं च।
            अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत॥
            इदं बुधाय, इदं न मम॥
शनि :    ॐ शन्नो देविरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
             शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:। इदं शनैश्चराय, इदं न मम॥
राहु :     ॐ कयानश्चित्र आ भुवद्वती सदा वृध: सखा।
            कया शचिंष्ठया वृता॥ इदं राहवे, इदं न मम॥
केतु :    ॐ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मर्या अपेशसे।
            समुषदभिरजा यथा:। इदं केतवे, इदं न मम॥

नवग्रहों के मूल मंत्र

सूर्य :      ॐ सूर्याय नम:     चन्द्र :     ॐ चन्द्राय नम:      मंगल :    ॐ भौमाय नम:     गुरू :   ॐ गुरवे नम:
शुक्र :      ॐ शुक्राय नम    बुध :      ॐ बुधाय नम:        शनि :     ॐ शनये नम:       राहु :    ॐ राहवे नम: 
केतु :     ॐ केतवे नम:

नवग्रहों के बीज मंत्र

सूर्य :       ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:   चन्द्र :      ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम: मंगल :    ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम                               गुरू :       ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:   शुक्र :       ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:    बुध :       ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:

शनि :     ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:     राहु :     ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:      केतु :    ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:              

मंत्र जाप के द्वारा सर्वोत्तम फल प्राप्ति के लिए मंत्रों का जाप नियमित रूप से तथा अनुशासनपूर्वक करना चाहिए। मंत्रों का जाप केवल उन्हीं लोगों को करना चाहिए जो पूर्ण शुद्धता एवम स्वच्छता का पालन कर सकते हैं। किसी भी मंत्र का जाप प्रतिदिन कम से कम 108 बार जरूर करना चाहिए। आपको कौन से ग्रह के मंत्र का जाप करने से सबसे अधिक लाभ हो सकता है तथा उसी ग्रह के मंत्र से आपको जाप शुरू करना चाहिए

 मंत्र की उत्पत्ति

मंत्र की उत्पत्ति भय से या विश्वास से हुई है। आदि काल में मंत्र और धर्म में बड़ा संबंध था। प्रार्थना को एक प्रकार का मंत्र माना जाता था। मनुष्य का ऐसा विश्वास था कि प्रार्थना के उच्चारण से कार्यसिद्धि हो सकती है। इसलिये बहुत से लोग प्रार्थना को मंत्र समझते थे।

जब मनुष्य पर कोई आकस्मिक विपत्ति आती थी तो वह समझता था कि इसका कारण कोई अदृश्य शक्ति है।  मकान का गिर जाना, आकस्मिक रोग हो जाना और अन्य ऐसी घटनाओं का कारण कोई भूत या पिशाच माना जाता था और इसकी शांति के लिये मंत्र का प्रयोग किया जाता था। आकस्मिक संकट बार-बार नहीं आते। इसलिये लोग समझते थे कि मंत्र सिद्ध हो गया। प्राचीन काल में वैद्य ओषधि और मंत्र दोनों का साथ-साथ प्रयोग करता था। ओषधि को अभिमंत्रित किया जाता था और विश्वास था कि ऐसा करने से वह अधिक प्रभावोत्पादक हो जाती है।

मंत्र का प्रयोग सारे संसार में किया जाता था और मूलत: इसकी क्रियाएँ सर्वत्र एक जैसी ही थीं। विज्ञान युग के आरंभ से पहले विविध रोग विविध प्रकार के राक्षस या पिशाच माने जाते थे। अत: पिशाचों का शमन, निवारण और उच्चाटन किया जाता था। मंत्र में प्रधानता तो शब्दों की ही थी परंतु शब्दों के साथ क्रियाएँ भी लगी हुई थीं। मंत्रोच्चारण करते समय इन क्रियाओं में त्रिशूल, झाड़ू, कटार, वृक्षविशेष की टहनियों और सूप तथा कलश आदि का भी प्रयोग किया जाता था। रोग की एक छोटी सी प्रतिमा बनाई जाती थी और उस पर प्रयोग होता था। इसी प्रकार शत्रु की प्रतिमा बनाई जाती थी और उस पर मारण, उच्चाटन आदि प्रयोग किए जाते थे। ऐसा विश्वास था कि ज्यों-ज्यों ऐसी प्रतिमा पर मंत्रप्रयोग होता है त्यों-त्यों शत्रु के शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता जाता है। पीपल या वट वृक्ष के पत्तों पर कुछ मंत्र लिखकर उनके मणि या ताबीज बनाए जाते थै जिन्हें कलाई या कंठ में बाँधने से रोगनिवारण होता, भूत प्रेत से रक्षा होती और शत्रु वश में होता था। ये विधियाँ कुछ हद तक इस समय भी प्रचलित हैं। 

ऐसा माना जाता था कि वृक्षों में, चतुष्पथों पर, नदियों में, तालाबों में और कितने ही कुओं में तथा सूने मकानों में ऐसे प्राणी निवास करते हैं जो मनुष्य को दु:ख या सुख पहुँचाया करते हैं और अनेक विषम स्थितियाँ उनके कोप के कारण ही उत्पन्न हो जाया करती हैं। इनका शमन करने के लिये विशेष प्रकार के मंत्रों और विविधि क्रियाओं का उपयोग किया जाता था और यह माना जाता था कि इससे संतुष्ट होकर ये  व्यक्तिविशेष को तंग नहीं करते। शाक्त देव और देवियाँ कई प्रकार की विपत्तियों के कारण समझे जाते थे। यह भी माना जाता था कि भूत, पिशाच और डाकिनी आदि का उच्चाटन शाक्त देवों के अनुग्रह से हो सकता है। इसलिये ऐसे देवों का मंत्रों के द्वारा आह्वान किया जाता था। इनकी बलि दी जाती थी और जागरण किए जाते थे। 

मंत्र संग्रह

सिद्धि के लिए श्री गणेश मंत्र

ॐ ग्लां ग्लीं ग्लूं गं गणपतये नम : सिद्धिं मे देहि बुद्धिं प्रकाशय ग्लूं  गलीं ग्लां  फट् स्वाहा||

विधि :- 

इस मंत्र का जप करने वाला साधक सफेद वस्त्र धारण कर सफेद रंग के आसन पर बैठकर पूर्ववत् नियम का पालन करते हुए इस मंत्र का सात हजार जप करे| जप के समय दूब, चावल, सफेद चन्दन सूजी का  लड्डू आदि रखे तथा जप काल में कपूर की धूप  जलाये  तो  यह मंत्र ,सर्व मंत्रों को  सिद्ध करने  की  ताकत (Power, शक्ति) प्रदान करता है|

 श्री चामुण्डा मन्त्र                                                         

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।
भोजन से पूर्व बोलने का मन्त्र
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ।। भोजन के बाद का मन्त्र 
 अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः । 
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः ।।

श्री दुर्गा गायत्री मन्त्र

 ॐ महादेव्यै विह्महे दुर्गायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ।। 
पीपल पूजन मन्त्र
 अश्वत्थाय वरेण्याय सर्वैश्वर्यदायिने । 
अनन्तशिवरुपाय वृक्षराजाय ते नमः ।। 
क्षमा प्रार्थना मन्त्र
 मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन । 
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे

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