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रविवार, 18 सितंबर 2016

लाल किताब का गणित भी अपनी अलग किस्म का                   वर्तमान समय में लाल किताब की उपयोगिता                 

लाल किताब का गणित भी अपनी अलग किस्म का

                  वर्तमान समय में लाल किताब की उपयोगिता                 

अठारहवीं सदी में वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में प. गिरधारी लाल जी शर्मा अंग्रेजी हुकूमत में सरकारी पद पर आसीन थे | ज्योतिषशाश्त्र एवं कर्मकांड के बारे में अच्छा-खासा ज्ञान था | उन्हीं के सरकारी पद पर काम करने के समय में लाहौर में जमीन खुदाई (पाटने) सम्बन्धित कार्य चल रहा था, खुदाई के दौरान उस जमीन में से पीतल की पाटिकाए प्राप्त हुई जिन पर उर्दू एंव फारसी भाषा में कुछ लिखा (आज के लाल किताब सबंधी ) हुआ था | उन पाटिकाओ को प.गिरधारी लाल शर्मा जी के पास लाया जो कि ज्योतिष एंव कर्मकाण्ड के अच्छे ज्ञाता होने के कारण तथा उनकी उर्दू , फारसी एंव संस्कृत पर भी अच्छी पकड होने के कारण ही इन पट्टिकाओं को अध्ययन के लिए लाया गया | कई वर्षो तक प. गिरधारी लाल जी ने इन पटिकाओं पर परिश्रमपूर्वक अध्यन (शोध) किया, इस अध्यन कार्य में उनके ही कार्यालय में उनके साथी रूपचंद जोशी जी का भी काफी सहयोग मिला | पं. गिरधारी लाल जी शर्मा व उनके सहयोगी द्वारा अपने अथक परिश्रम से इन पट्टिकाओं पर उकरित अरबी व फारसी भाषा का हिंदी में अनुवाद किया | 1936 में पता नहीं क्या हुआ (इसकी जानकारी किसी भी ग्रन्थ या अखबार या कहीं और तरीके से ) यह किताब सन 1936 में प. रुप चन्द्र शर्मा जी के नाम से "लाल किताब" के नाम से अरबी भाषा मे लाहौर में प्रकाशित हो गई | यह"लाल किताब" प्रकाशित होते ही काफी प्रसिद्ध हो गई | 

इस किताब के इतनी जल्दी प्रसिद्ध होने का एक कारण यह भी है कि ग्रहो के उपायो के रूप में वो सरल टोटके जिन्हे आम व्यक्ति बिना किसी योग्य विद्वान, योग्य पंडित, ज्योतिषाचार्य (दूसरे की सहायता के) के स्वंय ही ये उपाय कर सकता था । 

हाँलाकि इस किताब के बारे में समाज में तरह-2 की भ्रान्तियाँ प्रचलित है, कुछ लोगो का कहना है कि "भृगु संहिता", "अर्जुन संहिता", "ध्रुवनाड़ी" ग्रंथों की तरह इस किताब का इतिहास है | कुछ लोगो का ये भी कहना है कि पहले आकाशवाणी हुई फिर इस ग्रन्थ की रचना हुई तथा कुछ अन्य का कहना है कि इस किताब की मौलिक रचना अरब के विद्वानो द्वारा की गई। 

आजतक "लाल किताब" को आधार मान कर काफी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | 

1. लाल किताब के फरमान -- सन 1939 में प्रकाशित 

2. लाल किताब के अरमान -- सन 1940 में प्रकाशित 

3. लाल किताब (गुटका) -- सन 1941 में प्रकाशित 

4. लाल किताब -- सन 1942 में प्रकाशित 

5 लाल किताब -- सन 1952 में प्रकाशित (पृष्ठ संख्या 1172, इसी संस्करण को अंतिम संस्करण के रूप में ) 

नोट: इन उपरोक्त किताबों की मूल भाषा उर्दू है जो उस समय की आम प्रचलित भाषा थी। और निम्न किताबें उपरोक्त किताबों का हिंदी व अंग्रेजी रूपांतर है | 

6. पं. किसनलाल शर्मा द्वारा लिखित व मनोज पाकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित लाल किताब 

7. पं. राधाकृष्ण श्रीमाली द्वारा लिखित व डायमंड पाकेट बुक्स (प्रा) लि. द्वारा प्रकाशित लाल किताब

8. प्रो. यु.सी. महाजन द्वारा लिखित व पुस्तक महल दिल्ली द्वारा प्रकाशित लाल किताब (अंग्रेजी) 

सैद्धान्तिक रूप से यदि हम लाल किताब का विवेचन करे़ तो पाएगें कि इसका वैदिक ज्योतिष से बहुत अन्तर है। भारतीय वैदिक ज्योतिष में लग्न की महत्ता है ।

जबकि लाल किताब में लग्न का कोई महत्व नही लाल किताब में मेष राशि को ही लग्न मान लिया जाता  है।

लाल किताब का गणित भी अपनी अलग किस्म का ही है । 

जहां वैदिक ज्योतिष में एक और हम वर्ग कुण्डली  (नवांश, दशंमाश) के आधार पर फलादेश  करने का नियम

है वहीं लाल किताब में अन्धी कुण्डली नाबालिग ग्रहो की कुण्डली  बनाकर भविष्य फल बताया जाता है। लाल

किताब में एक भाव की दूसरे भाव पर दृष्टि से सम्बन्धित नियम भी अनोखा है। 

इन सब चीजो का विश्लेषण करने से एक बात जो प्रमुख रूप से उभर कर सामने आती है कि यदि लाल किताब के गणित एंव फलित पक्ष को नजर अन्दाज कर दिया जाऎ तथा ग्रह दोष (दूर करने के लिए जो सरल टोटके इसमें बताए गए है , यदि उन्हे किया जाऎ तो व्यक्ति लाल किताब से काफी हद तक लाभ उठा सकता है                                                                                  

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